मुझे ऊब है
अपने इन जगवालों से
मुझे ऊब है
यहॉं के भोज निरालों से
मुझे ऊब है
स्वर्ग सी अप्सराओं से
औ इनके मयखानों
के प्यालों से
मुझे ऊब है
गृहस्थ लोगों
के विचारों से
मुझे ऊब है
व्यर्थ के खेल
विकारों से
मुझे ऊब है
घर की चारदिवारी से
हॉं पर ऊबता नहीं मैं
पुस्तकों, पेडों-फ़ूलों, औ
जन्तु-जीवों प्यारों से !
कविः
विप्लव
Tuesday, January 15, 2008
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