सोकर उठता हूँ जब सुबह को मैं
तो ठण्डी बयारों के साथ तुम्हे झूमता देखता हूँ
बोगनविलैया के फूलों
हरे रंग के पेड़ों को तुमने
ढॉंप रखा है अपनी पीली-श्वेत सी
आभा से
कहीं-कहीं पर ठिठोली करते
लाल रंग के तुम्हारे भाईयों को भी
पाता हूँ मैं
पक्षियों का कलरव
उस पर तुम्हारी यह थिरकन
बन जाती है एक अदभुत समा
मेरे लिये
मेरा कोई दोस्त नही है
उस दोस्त को तुम्हारे अंदर
पाता हूँ मैं
तुमसे जी भरकर बातें करना
चाहता हूँ मैं
कविः-
विप्लव,
Tuesday, January 15, 2008
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