तारों का टिम-टिम करना
पत्तों का सरसराना
चांद का यूं अनंत तक साथ में चलते जाना
अखरने सा सब लगता है!
अखरता है वो चांद की, चांदनी का दूर-दूर रहना
अखरता है बेमतलब चांद का यूं ही छिप जाना
होते तो चांद में भी कुछ दाग हैं मगर
अखरता है उन दागों का यूं ही भुला दिया जाना!
जब निराश सा कवि कहीं दूर
शब्दों के सृजन में व्यस्त होता है
तब चांद की किरणे धरती का स्पर्श करती हैं,
लेकिन कविता की निराशा में
इस आशा का तब कोई महत्व नहीं रहता शायद?
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