Sunday, March 29, 2009

देर शाम

देर शाम, जब दूर कहीं
सूरज की ढलकती कोई किरण
जब चाँद का आलिंगन करती है
जब छूकर उसको निकलती है,
जब अनगिनत पुकारों को
थाम कोई मिल जाती है,
जब अंधड़ की रूखी हवाओं को
ठहराव यूं ही मिल जाता है,
जब किश्ती के सवारों का
इन्तजार ख़त्म हो जाता है,
जब चाँद की ढुलकती सी किरणे
दरिया की बूंदे छू लेती,
जब दुनिया के हर एक कोने में
सुगन्धित सा स्पंदन छाता है,
जब कोई भी बादल न रहता
जब उजला चाँद निकलता है,
तब गीतों की लय में
मेरी कविता तरंगित होती है !

2 comments:

gujarati-poems.tk said...

Very nice viplavji,
aapki kavita muje bhot hi pasand aaI.
Sapana

विप्लव said...

प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद सपना जी, अच्छा लगा यह जानकर कि मेरा सृजन व्यर्थ नहीं जा रहा, लोग उसे पढ़ रहे हैं और सरहा रहें हैं...

 
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