नही है चाहत इस
दिल को किसी की
इस दिल में ख्व़ाब
है एक ही सजा
वह ऊँचा है सबसे
बेबसों के रुधीर से सिंचा
अब पाना उसे है
हमे है पता
रोकने की न करे
हमे कोई ख़ता
इस दिल को नही है
लालच किसी का
लालच है तो बस
ख्व़ाब हो वह पूरा
विचारों की भट्टी
देती है गर्मी
जब काली रातें हों तन्हा ।
कविः
विप्लव
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