Sunday, September 7, 2014

सृजन

srujan_hussain सृजन, कुछ शब्दों का बस मेल नहीं
यह तो सारी कल्पनाओं का जीवंत सार है
एफिल, गीज़ा और मोनालिसा तो नमूने भर हैं
सृजन में तो अनंत सा विस्तार है।
बांध तो सृजन को कोई कला से भी सकता है
लेकिन क्या इतने भर से यह कभी थमा है
या फिर हर जड़ में चेतन का संचार
कहीं सृजन से ही तो नहीं बना है!

सृजन उस बच्चे सा सरल है
जिसने अभी-अभी शब्द का अंतर पहचाना
या फिर उस ममता सा मधुर भी
जिसने जीवन के अमरत्व को जाना
मेरे तुम्हारे सृजन के मायने
अलग जरूर हो सकते हैं
लेकिन लक्ष्य सबका एक है
खुशी की वास्तविकता को महसूस कर पाना।


चित्र साभार- मकबूल फिदा हुसैन की प्रसिद्ध कृति 'मदर टेरेसा'

4 comments:

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा!

vandana gupta said...

्वाह क्या बात कही है………………कल के चर्चा मंच पर आपकी पोस्ट होगी।

सूर्यकान्त गुप्ता said...

सुन्दर रचना।

विप्लव said...

धन्यवाद साथियों, मेरा उत्‍साहवर्धन करने के लिए...

 
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