यह तो सारी कल्पनाओं का जीवंत सार है
एफिल, गीज़ा और मोनालिसा तो नमूने भर हैं
सृजन में तो अनंत सा विस्तार है।
बांध तो सृजन को कोई कला से भी सकता है
लेकिन क्या इतने भर से यह कभी थमा है
या फिर हर जड़ में चेतन का संचार
कहीं सृजन से ही तो नहीं बना है!
सृजन उस बच्चे सा सरल है
जिसने अभी-अभी शब्द का अंतर पहचाना
या फिर उस ममता सा मधुर भी
जिसने जीवन के अमरत्व को जाना
मेरे तुम्हारे सृजन के मायने
अलग जरूर हो सकते हैं
लेकिन लक्ष्य सबका एक है
खुशी की वास्तविकता को महसूस कर पाना।
चित्र साभार- मकबूल फिदा हुसैन की प्रसिद्ध कृति 'मदर टेरेसा'
4 comments:
बहुत उम्दा!
्वाह क्या बात कही है………………कल के चर्चा मंच पर आपकी पोस्ट होगी।
सुन्दर रचना।
धन्यवाद साथियों, मेरा उत्साहवर्धन करने के लिए...
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