
आज सेमल मुस्काया है
सुनहले लाल से फूलों
से यह लद-लद आया है ।
बसंत के मौसम की सारी बहार
क्यों आज ही उमड़ी सी लगती है
क्यों तराने से गाता लगता सेमल
और चारों ओर की यह प्रकृति ।
क्यों कुछ अपनत्व सा लगता
इस दिन से हमें
यकीनन सुनहले सेमल
के आगमन का प्रतीक, यह दिन
वो सेमल जो न जाने कब से
मेरा अपना है
अब जाने क्यों कंटीले बाग
के बीचों बीच खडा है
जब कवि का हृदय
न पंहुच पाता सेमल के करीब
तो उसका सारा उल्लास,
कविता के शब्द ही बन जाता...
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